“तुम दूसरों की चीजों को अपना बनाने की इच्छा न करो। दूसरे व्यक्ति की पत्नी, घर, खेत, पुरुष या स्त्री सेवक, गाये और गधे को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए।”
“दूसरे लोगों की चीज़ों को लेने की इच्छा तुम्हें नहीं करनी चाहिए। तुम्हें अपने पड़ोसी का घर, उसकी पत्नी, उसके सेवक और सेविकाओं, उसकी गायों, उसके गधों को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए। तुम्हें किसी की भी चीज़ को लेने की इच्छा नहीं करनी चाहिए।”
उन्हें खेत चाहिये सो वे उनको ले लेते हैं। उनको घर चाहिये सो वे उनको ले लेते हैं। वे किसी व्यक्ति को छलते हैं और उसका घर छींन लेते हैं। वे किसी व्यक्ति को छलते हैं और वे उससे उसकी वस्तुएँ छीन लेते हैं।
“हाँ! जो व्यक्ति बुरे कामों के द्वारा धनवान बनता है, उसका यह धनवान बनना, उसके लिये बहुत बुरा होगा। ऐसा व्यक्ति सुरक्षापूर्वक रहने के लिये ऐसे काम करता है। वह सोचा करता है कि वह उसकी वस्तुएं चुराने से दूसरे व्यक्तियों को रोक सकता है। किन्तु बुरी बातें उस पर पड़ेंगी ही।
सो यीशु ने उनसे कहा, “सावधानी के साथ सभी प्रकार के लोभ से अपने आप को दूर रखो। क्योंकि आवश्यकता से अधिक सम्पत्ति होने पर भी जीवन का आधार उसका संग्रह नहीं होता।”
मैं यह इसलिए कह रहा हूँ, “व्यभिचार मत कर, हत्या मत कर, चोरी मत कर, लालच मत रख।” और जो भी दूसरी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं, इस वचन में समा जाती हैं, “तुझे अपने साथी को ऐसे ही प्यार करना चाहिए, जैसे तू अपने आप को करता है।”
अपने जीवन को धन के लालच से मुक्त रखो। जो कुछ तुम्हारे पास है, उसी में संतोष करो क्योंकि परमेश्वर ने कहा है: “मैं तुझको कभी नहीं छोड़ूँगा; मैं तुझे कभी नहीं तजूँगा।”