आसा का पैर उसके राज्यकाल के उनतालीसवें वर्ष में रोगग्रस्त हो गया। उसका रोग बहुत बुरा था किन्तु उसने यहोवा से सहायाता नहीं चाही। आसा ने वैद्यों से सहायता चाही।
ओ इस्राएल के लोगों तुम्हें अपनी रक्षा के लिये अन्य लोगों पर निर्भर रहना छोड़ देना चाहिये। वे तो मनुष्य़ मात्र है और मनुष्य मर जाता है। इसलिये, तुझे यह नहीं सोचना चाहिये कि वे परमेश्वर के समान शक्तिशाली है।
क्योंकि उन्होंने जो कुछ उनके पास फालतु था, उसमें से दान दिया, किन्तु इसने अपनी दीनता में जो कुछ इसके पास था सब कुछ दे डाला। इसके पास इतना सा ही था जो इसके जीवन का सहारा था!”
जब कभी वह दुष्टात्मा इस पर आती है, इसे नीचे पटक देती है और इसके मुँह से झाग निकलने लगते हैं और यह दाँत पीसने लगता है और अकड़ जाता है। मैंने तेरे शिष्यों से इस दुष्ट आत्मा को बाहर निकालने की प्रार्थना की किन्तु वे उसे नहीं निकाल सके।”
तो वहीं एक ऐसी स्त्री थी जिसमें दुष्ट आत्मा समाई हुई थी। जिसने उसे अठारह बरसों से पंगु बनाया हुआ था। वह झुक कर कुबड़ी हो गयी थी और थोड़ी सी भी सीधी नहीं हो सकती थी।
जैसे ही वह किनारे पर उतरा, नगर का एक व्यक्ति उसे मिला। उसमें दुष्टात्माएँ समाई हुई थीं। एक लम्बे समय से उसने न तो कपड़े पहने थे और न ही वह घर में रहा था, बल्कि वह कब्रों में रहता था।
पर हम यह नहीं जानते कि यह अब देख कैसे सकता है? और न ही हम यह जानते हैं कि इसे आँखों की ज्योति किसने दी है। इसी से पूछो, यह काफ़ी बड़ा हो चुका है। अपने बारे में यह खुद बता सकता है।”
तभी एक ऐसे व्यक्ति को जो जन्म से ही लँगड़ा था, ले जाया जा रहा था। वे हर दिन उसे मन्दिर के सुन्दर नामक द्वार पर बैठा दिया करते थे। ताकि वह मन्दिर में जाने वाले लोगों से भीख के पैसे माँग लिया करे।