किन्तु उन्होंने उससे बलपूर्वक आग्रह करते हूए कहा, “हमारे साथ रुक जा क्योंकि लगभग साँझ हो चुकी है और अब दिन ढल चुका है।” सो वह उनके साथ ठहरने भीतर आ गया।
किन्तु लूत अपने घर चलने के लिए बार—बार कहता रहा। इस तरह स्वर्गदूत लूत के घर जाने के लिए तैयार हो गए। जब वे घर पहुँचे तो लूत उनके पीने के लिए कुछ लाया। लूत ने उनके लिए रोटियाँ बनाईं। लूत का पकाया भोजन स्वर्गदूतों ने खाया।
एक दिन एलीशा शूनेम को गया। शूनेम में एक महत्वपूर्ण स्त्री रहती थी। इस स्त्री ने एलीशा से कहा कि वह ठहरे और उसके घर भोजन करे। इसलिये जब भी एलीशा उस स्थान से होकर जाता था तब भोजन करने के लिये वहाँ रूकता था।
वहीं लीदिया नाम की एक महिला थी। वह बैंजनी रंग के कपड़े बेचा करती थी। वह परमेश्वर की उपासक थी। वह बड़े ध्यान से हमारी बातें सुन रही थी। प्रभु ने उसके ह्रदय के द्वार खोल दिये थे ताकि, जो कुछ पौलुस कह रहा था, वह उन बातों पर ध्यान दे सके।