“उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे, मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’
“उसके स्वामी ने उससे कहा, ‘शाबाश! तुम भरोसे के लायक अच्छे दास हो। थोड़ी सी रकम के सम्बन्ध में तुम विश्वास पात्र रहे। मैं तुम्हें और अधिक का अधिकार दूँगा। भीतर जा और अपने स्वामी की प्रसन्नता में शामिल हो।’
उसने यह बात इसलिये नहीं कही थी कि उसे गरीबों की बहुत चिन्ता थी बल्कि वह तो स्वयं एक चोर था। और रूपयों की थैली उसी के पास रहती थी। उसमें जो डाला जाता उसे वह चुरा लेता था।