और फिर ऐसा हुआ कि जब उसका उपासना का समय पूरा हो गया तो वह वापस अपने घर लौट गया।
द्वारपालों के सम्बन्धियों को, जो छोटे नगर में रहते थे, समय समय पर आकर उनको सहायता करनी पड़ती थी। वे आते थे और हर बार सात दिन तक द्वारपालों की सहायता करते थे।
फिर जब वह बाहर आया तो उनसे बोल नहीं पा रहा था। उन्हें लगा जैसे मन्दिर के भीतर उसे कोई दर्शन हुआ है। वह गूँगा हो गया था और केवल संकेत कर रहा था।
थोड़े दिनों बाद उसकी पत्नी इलीशिबा गर्भवती हुई। पाँच महीने तक वह सबसे अलग थलग रही। उसने कहा,