काम करने वाले को मज़दूरी देना कोई दान नहीं है, वह तो उसका अधिकार है।
“परमेश्वर को किसी ने क्या दिया है? कि वह किसी को उसके बदले कुछ दे।”
और यदि यह परमेश्वर के अनुग्रह का परिणाम है तो लोग जो कर्म करते हैं, यह उन कर्मों का परिणाम नहीं है। नहीं तो परमेश्वर की अनुग्रह, अनुग्रह ही नहीं ठहरती।
किन्तु यीशु मसीह में सम्पन्न किए गए अनुग्रह के छुटकारे के द्वारा उसके अनुग्रह से वे एक सेंतमेत के उपहार के रूप में धर्मी ठहराये गये हैं।
क्यों नहीं? क्योंकि वे इसका पालन विश्वास से नहीं, बल्कि अपने कर्मों से कर रहे थे, वे उस चट्टान पर ठोकर खा गये, जो ठोकर दिलाती है।