तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं।
किन्तु वे लोग दूसरे लोगों से कहा करते हैं, ‘मेरे पास मत आओ, मुझे उस समय तक मत छुओ, जब तक मैं तुम्हें पवित्र न कर दूँ।’ मेरी आँखों में वे लोग धुएँ के जैसे हैं और उनकी आग हर समय जला करती है।”
उस फ़रीसी ने जिसने यीशु को अपने घर बुलाया था, यह देखकर मन ही मन सोचा, “यदि यह मनुष्य नबी होता तो जान जाता कि उसे छूने वाली यह स्त्री कौन है और कैसी है? वह जान जाता कि यह तो पापिन है।”
सो, न्याय करने वाले मेरे मित्र तू चाहे कोई भी है, तेरे पास कोई बहाना नहीं है क्योंकि जिस बात के लिये तू किसी दूसरे को दोषी मानता है, उसी से तू अपने आपको भी अपराधी सिद्ध करता है क्योंकि तू जिन कर्मों का न्याय करता है उन्हें आप भी करता है।
अब हम यह जानते हैं कि व्यवस्था में जो कुछ कहा गया है, वह उन को सम्बोधित है जो व्यवस्था के अधीन हैं। ताकि हर मुँह को बन्द किया जा सके और सारा जगत परमेश्वर के दण्ड के योग्य ठहरे।
सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।)
तो फिर क्या करना चाहिये? मैं अपनी आत्मा से तो प्रार्थना करूँगा ही किन्तु साथ ही अपनी बुद्धि से भी प्रार्थना करूँगा। अपनी आत्मा से तो उसकी स्तुति करूँगा ही किन्तु अपनी बुद्धि से भी उसकी स्तुति करूँगा।
कौन कहता है कि तू किसी दूसरे से अधिक अच्छा है। तेरे पास अपना ऐसा क्या है? जो तुझे दिया नहीं गया है? और जब तुझे सब कुछ किसी के द्वारा दिया गया है तो फिर इस रूप में अभिमान किस बात का कि जैसे तूने किसी से कुछ पाया ही न हो।
किन्तु वे सभी लोग जो व्यवस्था के विधानों के पालन पर निर्भर रहते हैं, वे तो किसी अभिशाप के अधीन हैं। शास्त्र में लिखा है: “ऐसा हर व्यक्ति शापित है जो व्यवस्था के विधान की पुस्तक में लिखी हर बात का लगन के साथ पालन नहीं करता।”
किन्तु शास्त्र ने घोषणा की है कि यह समूचा संसार पाप की शक्ति के अधीन है। ताकि यीशु मसीह में विश्वास के आधार पर जो वचन दिया गया है, वह विश्वासी जनों को भी मिले।
किन्तु इससे कोई अंतर नहीं पड़ता। महत्वपूर्ण तो यह है कि एक ढंग से या दूसरे ढंग से, चाहे बुरा उद्देश्य हो, चाहे भला प्रचार तो मसीह का ही होता है और इससे मुझे आनन्द मिलता है और आनन्द मिलता ही रहेगा।