एलीहू अय्यूब के तीनों मित्रों से भी नाराज़ था क्योंकि वे तीनों ही अय्यूब के प्रश्नों का युक्ति संगत उत्तर नहीं दे पाये थे और अय्यूब को ही दोषी बता रहे थे। इससे तो फिर ऐसा लगा कि जैसे परमेश्वर ही दोषी था।
यहोवा जब अय्यूब से अपनी बात कर चुका तो यहोवा ने तेमान के निवासी एलीपज से कहा: “मैं तुझसे और तेरे दो मित्रों से क्रोधित हूँ क्योंकि तूने मेरे बारे में उचित बातें नहीं कही थीं। किन्तु अय्यूब ने मेरे बारे में उचित बातें कहीं थीं। अय्यूब मेरा दास है।
अंधों को आँखें मिल रही हैं, लूले-लंगड़े चल पा रहे हैं, कोढ़ी चंगे हो रहे हैं, बहरे सुन रहे हैं और मरे हुए जिलाये जा रहे हैं। और दीन दुःखियों में सुसमाचार का प्रचार किया जा रहा है।
यीशु ने जब यह सुना तो वह बोला, “यह बीमारी जान लेवा नहीं है। बल्कि परमेश्वर की महिमा को प्रकट करने के लिये है। जिससे परमेश्वर के पुत्र को महिमा प्राप्त होगी।”
वहाँ के निवासियों ने जब उस जंतु को उसके हाथ से लटकते देखा तो वे आपस में कहने लगे, “निश्चय ही यह व्यक्ति एक हत्यारा है। यद्यपि यह सागर से बच निकला है किन्तु न्याय इसे जीने नहीं दे रहा है।”
फिर उन्होंने उन्हें और धमकाने के बाद छोड़ दिया। उन्हें दण्ड देने का उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल सका क्योंकि जो घटना घटी थी, उसके लिये सभी लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। जिस व्यक्ति पर अच्छा करने का यह आश्चर्यकर्म किया गया था, उसकी आयु चालीस साल से ऊपर थी।
इसलिए हम जानते हैं कि हमने अपना विश्वास उस प्रेम पर टिकाया है जो परमेश्वर में हमारे लिए है। परमेश्वर प्रेम है और जो प्रेम में स्थित रहता है, वह परमेश्वर में स्थित रहता है और परमेश्वर उसमें स्थित रहता है।