“हे यरूशलेम, हे यरूशलेम! तू नबियों की हत्या करता है और परमेश्वर ने जिन्हें तेरे पास भेजा है, उन पर पत्थर बरसाता है। मैंने कितनी ही बार तेरे लोगों को वैसे ही परस्पर इकट्ठा करना चाहा है जैसे एक मुर्गी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे समेट लेती है। पर तूने नहीं चाहा।
और जो बातें यहाँ लिखी हैं, वे इसलिए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। और इसलिये कि विश्वास करते हुए उसके नाम से तुम जीवन पाओ।
यीशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं अपनी महिमा करूँ तो वह महिमा मेरी कुछ भी नहीं है। जो मुझे महिमा देता है वह मेरा परम पिता है। जिसके बारे में तुम दावा करते हो कि वह तुम्हारा परमेश्वर है।
जो दुर्बल हैं, उनके लिये मैं दुर्बल बना ताकि मैं दुर्बलों को जीत सकूँ। हर किसी के लिये मैं हर किसी के जैसा बना ताकि हर सम्भव उपाय से उनका उद्धार कर सकूँ।
जब हम मनुष्य द्वारा दी गयी साक्षी को मानते हैं तो परमेश्वर द्वारा दी गयी साक्षी तो और अधिक मूल्यवान है। परमेश्वर की साक्षी का महत्व इसमें है कि अपने पुत्र के विषय में साक्षी उसने दी है।