जो उसमें विश्वास रखता है उसे दोषी न ठहराया जाय पर जो उसमें विश्वास नहीं रखता, उसे दोषी ठहराया जा चुका है क्योंकि उसने परमेश्वर के एकमात्र पुत्र के नाम में विश्वास नहीं रखा है।
और जो बातें यहाँ लिखी हैं, वे इसलिए हैं कि तुम विश्वास करो कि यीशु ही परमेश्वर का पुत्र, मसीह है। और इसलिये कि विश्वास करते हुए उसके नाम से तुम जीवन पाओ।
परमेश्वर को जगत से इतना प्रेम था कि उसने अपने एकमात्र पुत्र को दे दिया, ताकि हर वह आदमी जो उसमें विश्वास रखता है, नष्ट न हो जाये बल्कि उसे अनन्त जीवन मिल जाये।
इसलिए वह जो उसके पुत्र में विश्वास करता है अनन्त जीवन पाता है पर वह जो परमेश्वर के पुत्र की बात नहीं मानता उसे वह जीवन नहीं मिलेगा। इसके बजाय उस पर परम पिता परमेश्वर का क्रोध बना रहेगा।”
“मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ जो मेरे वचन को सुनता है और उस पर विश्वास करता है जिसने मुझे भेजा है, वह अनन्त जीवन पाता है। न्याय का दण्ड उस पर नहीं पड़ेगा। इसके विपरीत वह मृत्यु से जीवन में प्रवेश पा जाता है।
ऐसा कौन है जो उन्हें दोषी ठहराएगा? मसीह यीशु वह है जो मर गया (और इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि) उसे फिर जिलाया गया। जो परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठा है और हमारी ओर से विनती भी करता है
ध्यान रहे! कि तुम उस बोलने वाले को मत नकारो। यदि वे उसको नकार कर नहीं बच पाये जिसने उन्हें धरती पर चेतावनी दी थी तो यदि हम उससे मुँह मोड़ेंगे जो हमें स्वर्ग से चेतावनी दे रहा है, तो हम तो दण्ड से बिल्कुल भी नहीं बच पायेंगे।
वह जो परमेश्वर के पुत्र में विश्वास रखता है, वह अपने भीतर उस साक्षी को रखता है। परमेश्वर ने जो कहा है, उस पर जो विश्वास नहीं रखता, वह परमेश्वर को झूठा ठहराता है। क्योंकि उसने उस साक्षी का विश्वास नहीं किया है, जो परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में दी है।