पिलातुस जब न्याय के आसन पर बैठा था तो उसकी पत्नी ने उसके पास एक संदेश भेजा, “उस सीधे सच्चे मनुष्य के साथ कुछ मत कर बैठना। मैंने उसके बारे में एक सपना देखा है जिससे आज सारे दिन मैं बेचैन रही।”
पिलातुस ने देखा कि अब कोई लाभ नहीं। बल्कि दंगा भड़कने को है। सो उसने थोड़ा पानी लिया और भीड़ के सामने अपने हाथ धोये, वह बोला, “इस व्यक्ति के खून से मेरा कोई सरोकार नहीं है। यह तुम्हारा मामला है।”
किन्तु हमारा दण्ड तो न्याय पूर्ण है क्योंकि हमने जो कुछ किया, उसके लिये जो हमें मिलना चाहिये था, वही मिल रहा है पर इस व्यक्ति ने तो कुछ भी बुरा नहीं किया है।”
जब उन्होंने उसे देखा तो महायाजकों और मन्दिर के पहरेदारों ने चिल्ला कर कहा, “इसे क्रूस पर चढ़ा दो। इसे क्रूस पर चढ़ा दो।” पिलातुस ने उससे कहा, “तुम इसे ले जाओ और क्रूस पर चढ़ा दो, मैं इसमें कोई खोट नहीं पा सक रहा हूँ।”
ऐसा ही महायाजक हमारी आवश्यकता को पूरा कर सकता है, जो पवित्र हो, दोषरहित हो, शुद्ध हो, पापियों के प्रभाव से दूर रहता हो, स्वर्गों से भी जिसे ऊँचा उठाया गया हो।
क्योंकि मसीह ने भी हमारे पापों के लिए दुःख उठाया। अर्थात् वह जो निर्दोष था हम पापियों के लिये एक बार मर गया कि हमें परमेश्वर के समीप ले जाये। शरीर के भाव से तो वह मारा गया पर आत्मा के भाव से जिलाया गया।