यीशु ने उसे उत्तर दिया, “मैंने सदा लोगों के बीच हर किसी से खुल कर बात की है। सदा मैंने आराधनालयों में और मन्दिर में, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठे होते हैं, उपदेश दिया है। मैंने कभी भी छिपा कर कुछ नहीं कहा है।
मैंने अकेले ये बातें नहीं कीं। मैंने मुक्त भाव से कहा है। संसार के किसी भी अन्धेरे में मैं अपने वचन नहीं छुपाता। मैंने याकूब के लोगों से नहीं कहा कि वे मुझे विरान स्थानों पर ढूँढे। मैं परमेश्वर हूँ, और मैं सत्य बोलता हूँ। मैं वही बातें कहता हूँ जो सत्य हैं।
मेरे पास आ और मेरी सुन! मैंने आरम्भ में साफ—साफ बोला ताकि लोग मुझे सुन ले और मैं उस समय वहाँ पर था जब बाबुल की नींव पड़ी।” इस पर यशायाह ने कहा, अब देखो, मेरे स्वामी यहोवा ने इन बातों को तुम्हें बताने के लिये मुझे और अपनी आत्मा को भेजा है।
उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, “तुम तलवारों, लाठियों समेत मुझे पकड़ने ऐसे क्यों आये हो जैसे किसी चोर को पकड़ने आते हैं? मैं हर दिन मन्दिर में बैठा उपदेश दिया करता था और तुमने मुझे नहीं पकड़ा।
महायाजक यह सुनकर इतना क्रोधित हुआ कि वह अपने कपड़े फाड़ते हुए बोला, “इसने जो बातें कही हैं वे परमेश्वर की निन्दा में जाती हैं। अब हमें और गवाह नहीं चाहिये। तुम सब ने परमेश्वर के विरोध में कहते, इसे सुना है।
यीशु यहूदी आराधनालयों में उपदेश देता, परमेश्वर के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करता, लोगों के रोगों और हर प्रकार के संतापों को दूर करता उस सारे क्षेत्र में गाँव-गाँव और नगर-नगर घूमता रहा था।
यीशु जब मन्दिर में उपदेश दे रहा था, उसने ऊँचे स्वर में कहा, “तुम मुझे जानते हो और यह भी जानते हो मैं कहाँ से आया हूँ। फिर भी मैं अपनी ओर से नहीं आया। जिसने मुझे भेजा है, वह सत्य है, तुम उसे नहीं जानते।
कोई भी वह व्यक्ति जो लोगों में प्रसिद्ध होना चाहता है अपने कामों को छिपा कर नहीं करता। क्योंकि तुम आश्चर्य कर्म करते हो इसलिये सारे जगत के सामने अपने को प्रकट करो।”
स्वयं राजा इन बातों को जानता है और मैं मुक्त भाव से उससे कह सकता हूँ। मेरा निश्चय है कि इनमें से कोई भी बात उसकी आँखों से ओझल नहीं है। मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि यह बात किसी कोने में नहीं की गयी।