घाटी में लोगों ने इस पूरे समय गर्जन सुनी और पर्वत पर बिजली की चमक देखी। उन्होंने तुरही की ध्वनि सुनी और पर्वत से उठते धूएँ को देखा। लोग डरे और भय से काँप उठे। वे पर्वत से दूर खड़े रहे और देखते रहे।
तब मैंने करूब (स्वर्गदूतों) के पंखों की फड़फड़ाहट पूरे बाहरी आँगन में सुनी जा सकती थी। बाहरी आँगन में फड़फड़ाहट बड़ी प्रचण्ड थी, वैसी ही जैसी सर्वशक्तिमान परमेश्वर की गरजती वाणी होती है, जब वह बातें करता है।
फिर स्वर्ग में स्थित परमेश्वर के मन्दिर को खोला गया तथा वहाँ मन्दिर में वाचा की वह पेटी दिखाई दी। फिर बिजली की चकाचौंध होने लगी। मेघों का गर्जन-तर्जन और घड़घड़ाहट के शब्द भूकम्प और भयानक ओले बरसने लगे।
फिर मैंने एक आकाशवाणी सुनी, उसका महा नाद एक विशाल जल प्रपात के समान था या घनघोर मेघ गर्जन के जैसा था। जो महानाद मैंने सुना था, वह अनेक वीणा वादकों द्वारा एक साथ बजायी गई वीणाओं से उत्पन्न संगीत के समान था।
इसके बाद स्वर्गदूत ने उस धूपदान को उठाया, उसे वेदी की आग से भरा और उछाल कर धरती पर फेंक दिया। इस पर मेघों का गर्जन-तर्जन, भीषण शब्द, बिजली की चमक और भूकम्प होने लगे।