यहोवा कहता है, “मैंने उन लोगों को भी सहारा दिया है जो उपदेश ग्रहण करने के लिए कभी मेरे पास नहीं आये। जिन लोगों ने मुझे प्राप्त कर लिया, वे मेरी खोज में नहीं थे। मैंने एक ऐसी जाति से बात की जो मेरा नाम धारण नहीं करती थी। मैंने कहा था, ‘मैं यहाँ हूँ! मैं यहाँ हूँ!’
यीशु जब वहाँ से जा रहा था तो उसने चुंगी की चौकी पर बैठे एक व्यक्ति को देखा। उसका नाम मत्ती था। यीशु ने उससे कहा, “मेरे पीछे चला आ।” इस पर मत्ती खड़ा हुआ और उसके पीछे हो लिया।
वे गलील में बैतसैदा के निवासी फिलिप्पुस के पास गये और उससे विनती करते हुए कहने लगे, “महोदय, हम यीशु के दर्शन करना चाहते हैं।” तब फिलिप्पुस ने अन्द्रियास को आकर बताया।
जब यीशु ने आँख उठाई और देखा कि एक विशाल भीड़ उसकी तरफ़ आ रही है तो उसने फिलिप्पुस से पूछा, “इन सब लोगों को भोजन कराने के लिए रोटी कहाँ से खरीदी जा सकती है?”
फिलिप्पुस ने उत्तर दिया, “दो सौ चाँदी के सिक्कों से भी इतनी रोटियाँ नहीं ख़रीदी जा सकती हैं जिनमें से हर आदमी को एक निवाले से थोड़ा भी ज़्यादा मिल सके।”
ऐसा नहीं है कि मुझे अपनी उपलब्धि हो चुकी है अथवा मैं पूरा सिद्ध ही बन चुका हूँ। किन्तु मैं उस उपलब्धि को पा लेने के लिये निरन्तर यत्न कर रहा हूँ जिसके लिये मसीह यीशु ने मुझे अपना बधुँआ बनाया था।