यूसुफ कुएँ में था, उसके भाई भोजन करने बैठे। तब उन्होंने नज़र उठाई और व्यापारियों का एक दल को देखा जो गिलाद से मिस्र की यात्रा पर थे। उनके ऊँट कई प्रकार के मसाले और धन ले जा रहे थे।
तब उनके पिता इस्राएल ने कहा, “यदि यह सचमुच सही है तो बिन्यामीन को अपने साथ ले जाओ। किन्तु प्रशासक के लिए कुछ भेंट ले जाओ। उन चीजों में से कुछ ले जाओ जो हम लोग अपने देश में इकट्ठा कर सके हैं। उसके लिए कुछ शहद, पिस्ते, बादाम, गोंद और लोबान ले जाओ।
“यिर्मयाह, यह सन्देश यहूदा के लोगों को दो: ‘मेरी आँखें आँसुओं से भरी हैं। मैं बिना रूके रात—दिन रोऊँगा। मैं अपनी कुमारी पुत्री के लिये रोऊँगा। मैं अपने लोगों के लिए रोऊँगा। क्यों क्योंकि किसी ने उन पर प्रहार किया और उन्हें कुचल डाला। वे बुरी तरह घायल किये गए हैं।
“इस्राएल के लोगों, सड़कों के संकेतों को लगाओ। उन संकेतों को लगाओ जो तुम्हें घर का मार्ग बतायें। सड़क को ध्यान से देखो। उस सड़क पर ध्यान रखो जिससे तुम यात्रा कर रहे हो। मेरी दुल्हन इस्राएल घर लौटो, अपने नगरों को लौट आओ।
मेरी दुल्हन, इस्राएल, मैं तुम्हें फिर सवारुँगा। तुम फिर सुन्दर देश बनोगी। तुम अपना तम्बूरा फिर संभालोगी। तुम विनोद करने वाले अन्य सभी लोगों के साथ नाचोगी।
“‘यहूदा और इस्राएल के लोगों ने तुम्हारे साथ व्यापार किया। उन्होंने तुम्हारी विक्रय चीजों के लिये भुगतान में गेहूँ, जैतून, अगाती, अंजीर, शहद, तेल और मलहम दिये।
नीनवे, तू बुरी तरह घायल हुआ है और ऐसा कुछ नहीं है जो तेरे घाव को भर सके। हर कोई जो तेरे विनाश के समाचार को सुनता है, तालियाँ बजाता है। वे सब प्रसन्र हैं! क्योंकि उन सब ने उस पीड़ा का अनुभव किया है, जिसे तू सदा उन्हें पहुँचाया करता था!