‘बारुक, तुमने कहा है: यह मेरे लिये बहुत बुरा है। यहोवा ने मेरी पीड़ा के साथ मुझे शोक दिया है। मैं बहुत थक गया हूँ। अपने कष्टों के कारण मैं क्षीण हो गया हूँ। मैं आराम नहीं पा सकता।’”
जैसे सागर से लहरे उठ उठ कर आती हैं। मैं सागर तंरगों का कोलाहल करता शब्द सुनता हूँ, वैसे ही मुझको विपतियाँ बारम्बार घेरी रहीं। हे यहोवा, तेरी लहरों ने मुझको दबोच रखा है। तेरी तरंगों ने मुझको ढाप लिया है।
हे यहोवा, सारी रात मैं तुझको पुकारता रहता हूँ। मेरा बिछौना मेरे आँसुओं से भीग गया है। मेरे बिछौने से आँसु टपक रहे हैं। तेरे लिये रोते हुए मैं क्षीण हो गया हूँ।
यहोवा ने ऊपर से आग को भेज दिया और वह आग मेरी हड्डियों के भीतर उतरी। उसने मेरे पैरों के लिये एक फंदा फेंका। उसने मुझे दूसरी दिशा में मोड़ दिया है। उसने मुझे वीरान कर डाला है। सारे दिन मैं रोती रहती हूँ।
“मेरे शत्रुओं का बंदी तू अपने सामने आने दे। फिर उनके साथ तू वैसा ही करेगा जैसा मेरे पापों के बदले में तूने मेरे साथ किया। ऐसा कर क्योंकि मैं बार बार कराह रहा। ऐसा कर क्योंकि मेरा हृदय दुर्बल है।”