तुमने ये भी कहा, ‘परमेश्वर सदैव मुझ पर क्रोधित नहीं रहेगा। परमेश्वर का क्रोध सदैव बना नहीं रहेगा।’ “यहूदा, तुम यह सब कुछ कहती हो, किन्तु तुम उतने ही पाप करती हो जितने तुम कर सकती हो।”
मैं सदा—सदा ही मुकद्दमा लड़ता रहूँगा। सदा—सदा ही मैं तो क्रोधित नहीं रहूँगा। यदि मैं कुपित ही रहूँ तो मनुष्य की आत्मा यानी वह जीवन जिसे मैंने उनको दिया है, मेरे सामने ही मर जायेगा।
यिर्मयाह, उत्तर की ओर देखो और यह सन्देश बोलो: “‘अविश्वासी इस्राएल के लोगों तुम लौटो।’ यह सन्देश यहोवा का था। ‘मैं तुम पर भौहे चढ़ाना छोड़ दूँगा, मैं दयासागर हूँ।’ यह सन्देश यहोवा का था। ‘मैं सदैव तुम पर क्रोधित नहीं रहूँगा।’
यहूदा के लोग गलत राह चले गए हैं। किन्तु यरूशलेम के वे लोग गलत राह चलते ही क्यों जा रहे हैं वे अपने झूठ में विश्वास रखते हैं। वे मुड़ने तथा लौटने से इन्कार करते हैं।
मैंने उनको ध्यान से सुना है, किन्तु वे वह नहीं कहते जो सत्य है। लोग अपने पाप के लिये पछताते नहीं। लोग उन बुरे कामों पर विचार नहीं करते जिन्हें उन्होंने किये हैं। परत्येक अपने मार्ग पर वैसे ही चला जा रहा है। वे युद्ध में दौड़ते हुए घोड़ों के समान हैं।
ऐसे उन लोगों पर विपत्तियाँ गिरेंगी, जो पापपूर्ण योजना बनाते हैं। ऐसे लोग बिस्तर में सोते हुए षड़यन्त्र रचते हैं और पौ फटते ही वे अपने षड़यन्त्रों पर चलने लगते हैं। क्यों क्योकि उन के पास उन्हें पूरा करने की शक्ति है।
लोग दोनों हाथों से बुरा करने में पारंगत हैं। अधिकारी लोग रिश्वत माँगते हैं। न्यायाधीश अदालतों में फैसला बदलने के लिये धन लिया करते हैं। “महत्वपूर्ण मुखिया” खरे और निष्पक्ष निर्णय नहीं लेते हैं। उन्हें जैसा भाता है, वे वैसा ही काम करते हैं।