इससे वह मनुष्य उस वृक्ष जैसा सुदृढ़ बनता है जिसको जलधार के किनारे रोपा गया है। वह उस वृक्ष समान है, जो उचित समय में फलता और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। वह जो भी करता है सफल ही होता है।
बीज उगे और वे अंगूर की बेल बने। यह बेल अच्छी थी। बेल ऊँची नहीं थी। किन्तु यह एक बड़े क्षेत्र को ढकने के लिये फैल गई। बेल के तने बने और छोटी बेलें बहुत लम्बी हो गई।
“अपनी माँ के साथ विवाद करो! क्योंकि वह मेरी पत्नी नहीं है! और नही मैं उसका पति हूँ! उससे कहो कि वह वेश्या न बनी रहे। उससे कहो कि वह अपने प्रेमियों को अपनी छातियों के बीच से दूर हटा दे।
उनकी माँ ने वेश्या का सा आचरण किया है। उनकी माँ को, जो काम उसने किये हैं, उनके लिये लज्जित होना चाहिये। उसने कहा था, ‘मैं अपने प्रेमियों के पास चली जाऊँगी। मेरे प्रेमी मुझे खाने और पीने को देते हैं। वे मुझे ऊन और सन देते हैं। वे मुझे दाखमधु और जैतून का तेल देते हैं।’
यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें एक अच्छे देश में ले जा रहा है, ऐसे देश में जिसमें नदियाँ और पानी के ऐसे सोते हैं जिनसे जमीन से पानी घाटियों और पहाड़ियों में बहता है।
वहाँ तुम्हें बहुत अधिक भोजन मिलेगा। तुम्हें वहाँ किसी चीज की कमी नहीं होगी। यह ऐसा देश है जहाँ लोहे की चट्टाने हैं। तुम पहाड़ियों से तांबा खोद सकते हो।