कुस्रू, तेरी सेनाएँ आगे बढ़ेंगी और मैं तेरे आगे चलूँगा। मैं पर्वतों को समतल कर दूँगा। मैं काँसे के नगर—द्वारों को तोड़ डालूँगा। मैं द्वार पर लगी लोहे की आँगल को काट डालूँगा।
तब अन्य वृक्ष उसे जानेंगे कि मैं ऊँचे वृक्षों को भूमि पर गिराता हूँ। और मैं छोटे वृक्षों को बढ़ाता और उन्हें लम्बा बनाता हूँ। मैं हरे वृक्षों को सुखा देता हूँ। और मैं सूखे वृक्षों को हरा करता हूँ। मैं यहोवा हूँ। यदि मैं कहूँगा कि मैं कुछ करुँगा तो मैं उसे अवश्य करूँगा!”
मेरा स्वामी यहोवा यह सन्देश देता है, “पगड़ी उतारो! मुकुट उतारो! परिवर्तन का समय आ पहुँचा है! महत्वपूर्ण प्रमुख नीचे लाए जाएंगे और जो लोग महत्वपूर्ण नहीं है, वे महत्वपूर्ण बनेंगे।
वह ऊँचा पर्वत जरूब्बाबेल के लिये समतल भूमि—सा होगा। वह मंदिर को बनायेगा और जब अन्तिम पत्थर उस स्थान पर रखा जाएगा तब लोग चिल्ला उठेंगे— ‘सुन्दर! अति सुन्दर।’”
मैं तुम्हें बताता हूँ, यही मनुष्य नेक ठहराया जाकर अपने घर लौटा, न कि वह दूसरा। क्योंकि हर वह व्यक्ति जो अपने आप को बड़ा समझेगा, उसे छोटा बना दिया जायेगा और जो अपने आप को दीन मानेगा, उसे बड़ा बना दिया जायेगा।”
यहोवा कंगालों को धूलि से उठाता है। यहोवा उनके दुःख को दूर करता है। यहोवा कंगालों को राजाओं के साथ बिठाता है। यहोवा कंगालों को प्रतिष्ठित सिंहासन पर बिठाता है। पूरा जगत अपनी नींव तक यहोवा का है! यहोवा जगत को उन खम्भों पर टिकाया है!