और जब शाम हुई तो नाव झील के बीचों-बीच थी और वह अकेला धरती पर था।
भीड़ को विदा करके वह अकेले में प्रार्थना करने को पहाड़ पर चला गया। साँझ होने पर वह वहाँ अकेला था।
उन्हें बिदा करके, प्रार्थना करने के लिये वह पहाड़ी पर चला गया।
उसने देखा कि उन्हें नाव खेना भारी पड़ रहा था। क्योंकि हवा उनके विरुद्ध थी। लगभग रात के चौथे पहर वह झील पर चलते हुए उनके पास आया। वह उनके पास से निकलने को ही था।