तभी मन्दिर का पट ऊपर से नीचे तक फट कर दो टुकड़े हो गया।
सूरज भी नहीं चमक रहा था। उधर मन्दिर में परदा फट कर दो टुकड़े हो गया।
इस आशा को हम आत्मा के सुदृढ़ और सुनिश्चित लंगर के रूप में रखते हैं। यह परदे के पीछे भीतर से भीतर तक पहुँचती है।