फिर यीशु ने वह स्थान छोड़ दिया और यहूदिया के क्षेत्र में यर्दन नदी के पार आ गया। भीड़ की भीड़ फिर उसके पास आने लगी। और अपनी रीति के अनुसार वह उपदेश देने लगा।
उपदेशक बहुत बुद्धिमान था। वह लोगों को शिक्षा देने में अपनी बुद्धि का प्रयोग किया करता था। उपदेशक ने बड़ी सावधानी के साथ अध्ययन किया और अनेक सूक्तियों को व्यवस्थित किया।
“उन लोगों को सहायता के लिये मेरे पास आना चाहिये था। लेकिन उन्होंने मुझसे अपना मुँह मोड़ा। मैंने उन लोगों को बार—बार शिक्षा देनी चाही किन्तु उन्होंने मेरी एक न सुनी। मैंने उन्हें सुधारना चाहा किन्तु उन्होंने अनसुनी की।
उसी समय यीशु ने भीड़ से कहा, “तुम तलवारों, लाठियों समेत मुझे पकड़ने ऐसे क्यों आये हो जैसे किसी चोर को पकड़ने आते हैं? मैं हर दिन मन्दिर में बैठा उपदेश दिया करता था और तुमने मुझे नहीं पकड़ा।
फिर कुछ फ़रीसी उसके पास आये और उससे पूछा, “क्या किसी पुरुष के लिये उचित है कि वह अपनी पत्नी को तलाक दे?” उन्होंने उसकी परीक्षा लेने के लिये उससे यह पूछा था।
जब सब्त का दिन आया, उसने आराधनालय में उपदेश देना आरम्भ किया। उसे सुनकर बहुत से लोग आश्चर्यचकित हुए। वे बोले, “इसको ये बातें कहाँ से मिली हैं? यह कैसी बुद्धिमानी है जो इसको दी गयी है? यह ऐसे आश्चर्य कर्म कैसे करता है?
जब यीशु नाव से बाहर निकला तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। वह उनके लिए बहुत दुखी हुआ क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों जैसे थे। सो वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।
यीशु ने उसे उत्तर दिया, “मैंने सदा लोगों के बीच हर किसी से खुल कर बात की है। सदा मैंने आराधनालयों में और मन्दिर में, जहाँ सभी यहूदी इकट्ठे होते हैं, उपदेश दिया है। मैंने कभी भी छिपा कर कुछ नहीं कहा है।