हर व्यक्ति चकित हो उठा। इतना चकित, कि सब आपस में एक दूसरे से पूछने लगे, “यह क्या है? अधिकार के साथ दिया गया एक नया उपदेश! यह दुष्टात्माओं को भी आज्ञा देता है और वे उसे मानती हैं।”
इससे भीड़ के लोगों को, यह देखकर कि बहरे गूंगे बोल रहे हैं, अपाहिज अच्छे हो गये, लँगड़े-लूले चल फिर रहे हैं और अन्धे अब देख पा रहे हैं, बड़ा अचरज हुआ। वे इस्राएल के परमेश्वर की स्तुति करने लगे।
यह मैं जानता हूँ क्योंकि मैं भी एक ऐसा व्यक्ति हूँ जो किसी बड़े अधिकारी के नीचे काम करता हूँ और मेरे नीचे भी दूसरे सिपाही हैं। जब मैं एक सिपाही से कहता हूँ ‘जा’ तो वह चला जाता है और दूसरे से कहता हूँ ‘आ’ तो वह आ जाता है। मैं अपने दास से कहता हूँ कि ‘यह कर’ तो वह उसे करता है।”
जब दुष्ट आत्मा को निकाल दिया गया तो वह गूँगा, जो पहले कुछ भी नहीं बोल सकता था, बोलने लगा। तब भीड़ के लोगों ने अचरज से भर कर कहा, “इस्राएल में ऐसी बात पहले कभी नहीं देखी गयी।”
फिर यरूशलेम जाते हुए जब वे मार्ग में थे तो यीशु उनसे आगे चल रहा था। वे डरे हुए थे और जो उनके पीछे चल रहे थे, वे भी डरे हुए थे। फिर यीशु बारहों शिष्यों को अलग ले गया और उन्हें बताने लगा कि उसके साथ क्या होने वाला है।
फिर युवक ने उनसे कहा, “डरो मत, तुम जिस यीशु नासरी को ढूँढ रही हो, जिसे क्रूस पर चढ़ाया गया था, वह जी उठा है! वह यहाँ नहीं है। इस स्थान को देखो जहाँ उन्होंने उसे रखा था।
फिर यीशु ने बारहों शिष्यों को एक साथ बुलाया और उन्हें दुष्टात्माओं से छुटकारा दिलाने का अधिकार और शक्ति प्रदान की। उसने उन्हें रोग दूर करने की शक्ति भी दी।