राह किनारे उसने अंजीर का एक पेड़ देखा सो वह उसके पास गया, पर उसे उस पर पत्तों को छोड़ और कुछ नहीं मिला। सो उसने पेड़ से कहा, “तुझ पर आगे कभी फल न लगे!” और वह अंजीर का पेड़ तुरंत सूख गया।
मेरे मित्र ने धरती खोदी और कंकड़ पत्थर हटा कर उसे साफ किया और वहाँ पर अंगूर की उत्तम बेलें रोप दीं। फिर खेत के बीच में उसने अंगूर के रस निकालने को कुंड बनाये। मित्र को आशा थी कि वहाँ उत्तम अंगूर होंगे किन्तु वहाँ जो अंगूर लगे थे वे बुरे थे।
“‘मैं उनके फल और फसलें ले लूँगा जिससे उनके यहाँ कोई पकी फसल नहीं होगी। अंगूर की बेलों में कोई अंगूर नहीं होंगे। अंजीर के पेड़ों पर कोई अंजीर नहीं होगा। यहाँ तक कि पत्तियाँ सूखेंगी और मर जाएंगी। मैं उन चीज़ों को ले लूँगा जिन्हें मैंने उन्हें दे दी थी।’”
यदि कोई मुझमें नहीं रहता तो वह टूटी शाखा की तरह फेंक दिया जाता है और सूख जाता है। फिर उन्हें बटोर कर आग में झोंक दिया जाता है और उन्हें जला दिया जाता है।
वे परमेश्वर को जानने का दावा करते हैं। किन्तु उनके कर्म दर्शाते हैं कि वे उसे जानते ही नहीं। वे घृणित और आज्ञा का उल्लंघन करने वाले हैं। तथा किसी भी अच्छे काम को करने में वे असमर्थ हैं।
ये लोग तुम्हारे प्रीति-भोजों में उन छुपी हुई चट्टानों के समान हैं जो घातक हैं। ये लोग निर्भयता के साथ तुम्हारे संग खाते-पीते हैं किन्तु उन्हें केवल अपने स्वार्थ की ही चिंता रहती है। वे बिना जल के बादल हैं। वे पतझड़ के ऐसे पेड़ हैं जिन पर फल नहीं होता। वे दोहरे मरे हुए हैं। उन्हें उखाड़ा जा चुका है।
जो बुरा करते चले आ रहे हैं, वे बुरा करते रहें। जो अपवित्र बने हुए हैं, वे अपवित्र ही बने रहें। जो धर्मी हैं, वे धर्मी ही बना रहे। जो पवित्र हैं वे पवित्र बना रहे।”