किन्तु जो मनुष्य के मुँह से बाहर आता है, वह उसके मन से निकलता है। यही उसको अपवित्र करता है।
उसके वचन बस व्यर्थ और झूठे होते हैं। वह विवेकी नहीं होता और न ही अच्छे काम सीखता है।
धर्मी के अधर जो उचित है जानते हैं, किन्तु दुष्ट का मुख बस कुटिल बातें बोलता।
बुद्धिमान की वाणी ज्ञान की प्रशंसा करती है, किन्तु मूर्ख का मुख मूर्खता उगलता है।
धर्मी जन का मन तौल कर बोलता है किन्तु दुष्ट का मुख, बुरी बात उगलता है।
सबसे बड़ी बात यह है कि तू अपने विचारों के बारे में सावधान रह। क्योंकि तेरे विचार जीवन को नियंत्रण में रखते हैं।
नीच और दुष्ट वह होता है जो बुरी बातें बोलता हुआ फिरता रहता है।
अरे ओ साँप के बच्चो! जब तुम बुरे हो तो अच्छी बातें कैसे कह सकते हो? व्यक्ति के शब्द, जो उसके मन में भरा है, उसी से निकलते हैं।
मनुष्य के मुख के भीतर जो जाता है वह उसे अपवित्र नहीं करता, बल्कि उसके मुँह से निकला हुआ शब्द उसे अपवित्र करता है।”
क्या तुम नहीं जानते कि जो कुछ किसी के मुँह में जाता है, वह उसके पेट में पहुँचता है और फिर पखाने में निकल जाता है?
फिर उसने कहा, “मनुष्य के भीतर से जो निकलता है, वही उसे अशुद्ध बनाता है
“स्वामी ने उससे कहा, ‘अरे दुष्ट सेवक, मैं तेरे अपने ही शब्दों के आधार पर तेरा न्याय करूँगा। तू तो जानता ही है कि में जो रखता नहीं हूँ, उसे भी ले लेने वाला और जो बोता नहीं हूँ, उसे भी काटने वाला एक कठोर व्यक्ति हूँ?
पुरानी कहावत है: ‘बुरी चीजें बुरे लोगों से आती हैं।’ “मैंने कुछ भी बुरा नहीं किया है! मैं बुरा व्यक्ति नहीं हूँ! अत: मैं आप पर चोट नहीं करुँगा।