वह ऐसे विलुप्त होगा जैसे स्वप्न शीघ्र ही कहीं उड़ जाता है। फिर कभी कोई उसको देख नहीं सकेगा, वह नष्ट हो जायेगा, उसे रात के स्वप्न की तरह हाँक दिया जायेगा।
मेरा घर, चरवाहे के अस्थिर तम्बू सा उखाड़ कर गिराया जा रहा है और मुझसे छीना जा रहा है। अब मेरा वैसा ही अन्त हो गया है जैसे करघे से कपड़ा लपेट कर काट लिया जाता है। क्षणभर में तूने मुझ को इस अंत तक पहुँचा दिया!
एक वाणी मुखरित हुई, उसने कहा, “बोलो!” सो व्यक्ति ने पूछा, “मैं क्या कहूँ” वाणी ने कहा, “लोग सर्वदा जीवित नहीं रहेंगे। वे सभी रेगिस्तान के घास के समान है। उनकी धार्मिकता जंगली फूल के समान है।