हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे परमेश्वर! तूने मुझे क्यों त्याग दिया है? मुझे बचाने के लिये तू क्यों बहुत दूर है? मेरी सहायता की पुकार को सुनने के लिये तू बहुत दूर है।
वे शासक ऐसे हैं जेसे वे पौधे जिन्हें धरती में रोपा गया हो, किन्तु इससे पहले की वे अपनी जड़े धरती में जमा पाये, परमेश्वर उन को बहा देता है और वे सूख कर मर जाते हैं। आँधी उन्हें तिनके सा उड़ा कर ले जाती है।
किसने उस विजेता को जगाया है, जो पूर्व से आयेगा कौन उससे दूसरे देशों को हरवाता और राजाओं को अधीन कर देता कौन उसकी तलवारों को इतना बढ़ा देता है कि वे इतनी असंख्य हो जाती जितनी रेत—कण होते हैं कौन उसके धनुषों को इतना असंख्य कर देता जितना भूसे के छिलके होते हैं
उसके हाथों में उसका छाज है जिस से वह अनाज को भूसे से अलग करता है। अपने खलिहान से वह साफ किये समस्त अनाज को उठा, इकट्ठा कर, कोठियों में भरेगा और भूसे को ऐसी आग में झोंक देगा जो कभी बुझाए नहीं बुझेगी।”