तब व्यक्ति ने कहा, “तुम्हारा नाम याकूब नहीं रहेगा। अब तुम्हारा नाम इस्राएल होगा। मैं तुम्हें यह नाम इसलिए देता हूँ कि तुमने परमेश्वर के साथ और मनुष्यों के साथ युद्ध किया है और तुम हराए नहीं जा सके हो।”
याकूब के सभी पुत्रों, पुत्रियों ने उसे धीरज बँधाने का प्रयत्न किया। किन्तु याकूब कभी धीरज न धर सका। याकूब ने कहा, “मैं मरने के दिन तक अपने पुत्र यूसुफ के शोक में डूबा रहूँगा।”
“देश में कोई अकाल या महामारी, या फसलों को बीमारी, या फफूँदी, या टिड्डी, या टिड्डे हो जाये या यदि इस्राएल के लोगों के नगरों में उनके शत्रु घेरा डाल दें, या यदि इस्राएल में किसी प्रकार की बीमारी हो
मैं घिरा हुआ था और यहोवा को सहायता के लिये पुकारा। मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा। परमेश्वर पवित्र निज मन्दिर में विराजा। उसने मेरी पुकार सुनी और सहायता की।
मेरा मन रात भर तेरे साथ रहना चाहता है और मेरे अन्दर की आत्मा हर नये दिन की प्रात: में तेरे साथ रहना चाहता है। जब धरती पर तेरा न्याय आयेगा, लोग खरा जीवन जीना सीख जायेंगे।
यहोवा कहता है, “रामा में एक चिल्लाहट सुनाई पड़ेगी— यह कटु रूदन और अधिक उदासी भरी होगी। राहेल अपने बच्चों के लिये रोएगी राहेल सान्त्वना पाने से इन्कार करेगी, क्योंकि उसके बच्चे मर गए हैं।”
एप्रैम अपना रोग देख कर और यहूदा अपना घाव देख कर अश्शुर की शरण पहुँचेंगे। उन्होने अपनी समस्याएँ उस महान राजा को बतायी थी। किन्तु वह राजा तुझे चंगा नहीं कर सकता, वह तेरे घाव को नहीं भर सकता है।
फिर जो यहूदी घर पर उसे सांत्वना दे रहे थे, जब उन्होंने देखा कि मरियम उठकर झटपट चल दी तो वे यह सोच कर कि वह कब्र पर विलाप करने जा रही है, उसके पीछे हो लिये।
यीशु ने इस धरती पर के जीवनकाल में जो उसे मृत्यु से बचा सकता था, ऊँचे स्वर में पुकारते हुए और रोते हुए उससे प्रार्थनाएँ तथा विनतियाँ की थीं और आदरपूर्ण समर्पण के कारण उसकी सुनी गयी।