मेरा स्वामी कहता है, “ये लोग कहते हैं कि वे मुझे प्रेम करते हैं। अपने मुख के शब्दों से वे मेरे प्रति आदर व्यक्त करते हैं। किन्तु उनके मन मुझ से बहुत दूर है। वह आदर जिसे वे मेरे प्रति दिखाते हैं, बस कोरे मानव नियम हैं जिन्हें उन्होंने कंठ कर रखा हैं।
बल्कि मैं तो अपने शरीर को कठोर अनुशासन में तपा कर, उसे अपने वश में करता हूँ। ताकि कहीं ऐसा न हो जाय कि दूसरों को उपदेश देने के बाद परमेश्वर के द्वारा मैं ही व्यर्थ ठहरा दिया जाऊँ!
यह वाचा वैसा नहीं होगा जैसा मैंने उनके पूर्वजों के साथ उस समय किया था। जब मैंने उनका हाथ मिस्र से निकाल लाने पकड़ा था। क्योंकि प्रभु कहता है, वे मेरे वाचा के विश्वासी नहीं रहे। मैंने उनसे मुँह फेर लिया।