एज्रा प्रार्थना कर रहा था और पापों को स्वीकार कर रहा था। वह परमेश्वर के मन्दिर के सामने रो रहा था और झुक कर प्रणाम कर रहा था। जिस समय एज्रा यह कर रहा था उस समय इस्राएल के लोगों का एक बड़ा समूह स्त्री, पुरूष और बच्चे उसके चारों ओर इकट्ठे हो गए। वे लोग भी जोर—जोर से रो रहे थे।
सो याजक एज्रा परस्पर इकट्ठे हुए। उन लोगों के सामने व्यवस्था के विधान की पुस्तक को ले आया। उस दिन महीने की पहली तारीख़ थी और वह महीना वर्ष का सातवाँ महीना था। उस सभा में पुरुष थे, स्त्रियाँ थीं, और वे सभी थे जो बातों को सुन और समझ सकते थे।
सभी स्त्री और पुरुष, जो चढ़ाना चाहते थे, हर प्रकार के अपने सोने के गहने लाए। वे चिमटी कान की बालियाँ, अगूंठियाँ, अन्य गहने लेकर आए। उन्होंने अपने सभी सोने के गहने यहोवा को अर्पित किए। यह यहोवा को विशेष भेंट थी।
लोग कहेंगे, ‘नेकी और शक्ति बस यहोवा से मिलती है।’” कुछ लोग यहोवा से नाराज़ हैं, किन्तु यहोवा का साक्षी आयेगा और यहोवा ने जो किया है, उसे बतायेगा। इस प्रकार वे नाराज़ लोग निराश होंगे।
किन्तु उन्होंने जब फिलिप्पुस पर विश्वास किया क्योंकि उसने उन्हें परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार और यीशु मसीह का नाम सुनाया था, तो वे स्त्री और पुरुष दोनों ही बपतिस्मा लेने लगे।
और उसने दमिश्क के आराधनालयों के नाम माँग कर अधिकार पत्र ले लिया जिससे उसे वहाँ यदि कोई इस पंथ का अनुयायी मिले, फिर चाहे वह स्त्री हो, चाहे पुरुष, तो वह उन्हें बंदी बना सके और फिर वापस यरूशलेम ले आये।
इस प्रकार समूचे यहूदिया, गलील और सामरिया के कलीसिया का वह समय शांति से बीता। वह कलीसिया और अधिक शक्तिशाली होने लगी। क्योंकि वह प्रभु से डर कर अपना जीवन व्यतीत करती थी, और पवित्र आत्मा ने उसे और अधिक प्रोत्साहित किया था सो उसकी संख्या बढ़ने लगी।