दो साल ऐसे बीत जाने के बाद फेलिक्स का स्थान पुरुखियुस फेस्तुस ने ग्रहण कर लिया। क्योंकि फेलिक्स यहूदियों को प्रसन्न रखना चाहता था इसीलिये उसने पौलुस को बंदीगृह में ही रहने दिया।
उसने जब यह देखा कि इस बात से यहूदी प्रसन्न होते हैं तो उसने पतरस को भी बंदी बनाने के लिये हाथ बढ़ाया (यह बिना ख़मीर की रोटी के उत्सव के दिनों की बात है)
तो उसने उससे कहा, “तुझ पर अभियोग लगाने वाले जब आ जायेंगे, मैं तभी तेरी सुनवाई करूँगा।” उसने आज्ञा दी कि पौलुस को पहरे के भीतर हेरोदेस के महल में रखा जाये।
जब वे वहाँ कई दिन बिता चुके तो फेस्तुस ने राजा के सामने पौलुस के मुकदमे को इस प्रकार समझाया, “यहाँ एक ऐसा व्यक्ति है जिसे फेलिक्स बंदी के रूप में छोड़ गया था।
फेस्तुस यहूदियों को प्रसन्न करना चाहता था, इसलिए उत्तर में उसने पौलुस से कहा, “तो क्या तू यरूशलेम जाना चाहता है ताकि मैं वहाँ तुझ पर लगाये गये इन अभियोगों का न्याय करूँ?”
क्या इससे तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं मनुष्यों का समर्थन चाहता हूँ? या यह कि मुझे परमेश्वर का समर्थन मिले? अथवा क्या मैं मनुष्यों को प्रसन्न करने का जतन कर रहा हूँ? यदि मैं मनुष्यों को प्रसन्न करता तो मैं मसीह के सेवक का सा नहीं होता।