पौलुस और सिलास जेल से बाहर निकल कर लीदिया के घर पहुँचे। धर्म-बंधुओं से मिलते हुए उन्होंने उनका उत्साह बढ़ाया और फिर वहाँ से चल दिये।
फिर इन्हीं दिनों पतरस ने भाई-बंधुओं के बीच खड़े होकर, जिनकी संख्या कोई एक सौ बीस थी, कहा,
वहीं लीदिया नाम की एक महिला थी। वह बैंजनी रंग के कपड़े बेचा करती थी। वह परमेश्वर की उपासक थी। वह बड़े ध्यान से हमारी बातें सुन रही थी। प्रभु ने उसके ह्रदय के द्वार खोल दिये थे ताकि, जो कुछ पौलुस कह रहा था, वह उन बातों पर ध्यान दे सके।
लिस्तरा और इकुनियुम के बंधुओं के साथ उसकी अच्छी बोलचाल थी।
जब उन्हें छोड़ दिया गया तो वे अपने ही लोगों के पास आ गये और उनसे जो कुछ प्रमुख याजकों और बुजुर्ग यहूदी नेताओं ने कहा था, वह सब उन्हें कह सुनाया।