टिड्डी दल को निर्देश दे दिया गया था कि वे लोगों के प्राण न लें बल्कि पाँच महीने तक उन्हें पीड़ा पहुँचाते रहें। वह पीड़ा जो उन्हें पहुँचाई जा रही थी, वैसी थी जैसे किसी व्यक्ति को बिच्छू के काटने से होती है।
मेरे पिता ने तुम पर भारी बोझ लादा। किन्तु मैं उस बोझ को बढ़ाऊँगा। मेरे पिता ने तुमको कोड़े लगाने का दण्ड दिया था। मैं ऐसे कोड़े लगाने का दण्ड दूँगा जिसकी छोर पर तेज धातु के टुकड़े हैं।’”
राजा यहूबियाम ने लोगों से वैसे ही बात की जैसे युवकों ने सलाह दी थी। उसने कहा, “मेरे पिता ने तुम्हारे बोझ को भारी किया था, किन्तु मैं उसे और अधिक भारी करूँगा। मेरे पिता ने तुम पर कोड़े लगाने का दण्ड किया था, किन्तु मैं ऐसे कोड़े लगाने का दण्ड दूँगा जिनकी छोर में तेज धातु के टुकड़े होंगे।”
“मनुष्य के पुत्र उन लोगों से डरो नहीं। जो वे कहें उससे डरो मत। यह सत्य है कि वे तुम्हारे विरुद्ध हो जायेंगे और तुमको चोट पहुँचाना चाहेंगे। वे काँटे के समान होंगे। तुम ऐसा सोचोगे कि तुम बिच्छुओं के बीच रह रहे हो। किन्तु वे जो कुछ कहें उनसे डरो नहीं। वे विद्रोही लोग हैं। किन्तु उनसे डरो नहीं।
“इसके बाद, मैंने देखा कि मेरे सामने एक और पशु खड़ा है। यह पशु चीते जैसे लग रहा था और उस चीते की पीठ पर चार पंख थे। पंख ऐसे लग रहे थे, जैसे वे किसी चिड़िया के पंख हों। इस पशु के चार सिर थे, और उसे शासन का अधिकार दिया गया था।
यीशु ने उसे उत्तर दिया, “तुम्हें तब तक मुझ पर कोई अधिकार नहीं हो सकता था जब तक वह तुम्हें परम पिता द्वारा नहीं दिया गया होता। इसलिये जिस व्यक्ति ने मुझे तेरे हवाले किया है, तुझसे भी बड़ा पापी है।”
उसे अनुमति दे दी गई कि वह अहंकार पूर्ण तथा निन्दा से भरे शब्द बोलने में अपने मुख का प्रयोग करे। उसे बयालीस महीने तक अपनी शक्ति के प्रयोग का अधिकार दिया गया।
परमेश्वर के संत जनों के साथ युद्ध करने और उन्हें हराने की अनुमति उसे दे दी गई। तथा हर वंश, हर जाति, हर परिवार-समूह, हर भाषा और हर देश पर उसे अधिकार दिया गया।