किन्तु मीकायाह यहोवा का माध्यम बना कहता ही रहा। उसने कहा, “सुनो! ये वे शब्द हैं जिन्हें यहोवा ने कहा है। मैंने यहोवा को स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठे देखा। उसके दूत उसके समीप खड़े थे।
यहोवा अपने विशाल पवित्र मन्दिर में विराजा है। यहोवा स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठता है। यहोवा सब कुछ देखता है, जो भी घटित होता है। यहोवा की आँखें लोगों की सज्जनता व दुर्जनता को परखने में लगी रहती हैं।
जिस वर्ष राजा उज्जिय्याह की मृत्यु हुई, मैंने अपने अद्भुत स्वामी के दर्शन किये। वह एक बहुत ऊँचे सिंहासन पर विराजमान था। उसके लम्वे चोगे से मन्दिर भर गया था।
उसके चारों ओर चमकता प्रकाश बादलों में मेघ धनुष सा था। यह यहोवा की महिमा सा दिख रहा था। जैसे ही मैने वह देखा, मैं धरती पर गिर गया। मैंने धरती पर अपना माथा टेका। तब मैंने एक आवाज सम्बोधित करते हुए सुनी।
तब मैंने उस कटोरे को देखा जो करुब (स्वर्गदूत) के सिरों के ऊपर था। कटोरा नीलमणि की तरह स्वच्छ नीला दिख रहा था। वहाँ कटोरे के ऊपर कुछ सिंहासन की तरह दिख रहा था।
“मेरे देखते ही देखते, उनकी जगह पर सिंहासन रखे गये और वह सनातन राजा सिंहासन पर विराज गया। उसके वस्त्र अति धवल थे, वे वस्त्र बर्फ से श्वेत थे। उनके सिर के बाल श्वेत थे, वे ऊन से भी श्वेत थे। उसका सिंहासन अग्नि का बना था और उसके पहिए लपटों से बने थे।
फिर उस स्त्री ने एक बच्चे को जन्म दिया जो एक लड़का था। उसे सभी जातियों पर लौह दण्ड के साथ शासन करना था। किन्तु उस बच्चे को उठाकर परमेश्वर और उसके सिंहासन के सामने ले जाया गया।
फिर मैं आत्मा से भावित हो उठा और वह दूत मुझे बीहड़ वन में ले गया जहाँ मैंने एक स्त्री को लाल रंग के एक ऐसे पशु पर बैठे देखा जो परमेश्वर के प्रति अपशब्दों से भरा था। उसके सात सिर थे और दस सींग।
फिर चौबीसों प्राचीनों और चारों प्राणियों ने सिंहासन पर विराजमान परमेश्वर को झुक कर प्रणाम किया और उसकी उपासना करते हुए गाने लगे: “आमीन! हल्लिलूय्याह!” जय हो उसकी।
अभी मैं आत्मा के आवेश में ही था कि वह मुझे एक विशाल और ऊँचे पर्वत पर ले गया। फिर उसने मुझे यरूशलेम की पवित्र नगरी का दर्शन कराया। वह परमेश्वर की ओर से आकाश से नीचे उतर रही थी।
इस पर जो सिंहासन पर बैठा था, वह बोला, “देखो, मैं सब कुछ नया किए दे रहा हूँ।” उसने फिर कहा, “इसे लिख ले क्योंकि ये वचन विश्वास करने योग्य हैं और सत्य हैं।”
“जो विजयी होगा मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठने का गौरव प्रदान करूँगा। ठीक वैसे ही जैसे मैं विजयी बनकर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठा हूँ।
सिंहासन में से बिजली की चकाचौंध, घड़घड़ाहट तथा मेघों का गर्जन-तर्जन निकल रहे थे। सिंहासन के सामने ही लपलपाती हुई सात मशालें जल रही थीं। ये मशालें परमेश्वर की सात आत्माएँ हैं।
फिर मैंने देखा कि जो सिंहासन पर विराजमान था, उसके दाहिने हाथ में एक लपेटा हुआ पुस्तक अर्थात् एक ऐसी पुस्तक जिसे लिखकर लपेट दिया जाता था। जिस पर दोनों ओर लिखावट थी। तथा उसे सात मुहर लगाकर मुद्रित किया हुआ था।
फिर मैंने सुना कि स्वर्ग की, धरती पर की, पाताल लोक की, समुद्र की, समूची सृष्टि—हाँ, उस समूचे ब्रह्माण्ड का हर प्राणी कह रहा था: “जो सिंहासन पर बैठा है और मेमना का स्तुति, आदर, महिमा और पराक्रम सर्वदा रहें!”