उस स्त्री ने बैजनी और लाल रंग के वस्त्र पहने हुए थे। वह सोने, बहुमूल्य रत्नों और मोतियों से सजी हुई थी। वह अपने हाथ में सोने का एक कटोरा लिए हुए थी जो बुरी बातों और उसके व्यभिचार की अशुद्ध वस्तुओं से भरा हुआ था।
कहेंगे: ‘कितना भयावह और कितनी भयानक है, महानगरी! यह उसके हेतु हुआ। उत्तम मलमली वस्त्र पहनती थी बैजनी और किरमिजी! और स्वर्ण से बहुमूल्य रत्नों से सुसज्जित मोतियों से सजती ही रही थी।
नगर की गलियों के बीच से होती हुई बह रही थी। नदी के दोनों तटों पर जीवन वृक्ष उगे थे। उन पर हर साल बारह फसलें लगा करतीं थीं। इसके प्रत्येक वृक्ष पर प्रतिमास एक फसल लगती थी तथा इन वृक्षों की पत्तियाँ अनेक जातियों को निरोग करने के लिए थीं।