“जो दस सींग तुमने देखे हैं, वे दस राजा हैं, उन्होंने अभी अपना शासन आरम्भ नहीं किया है परन्तु पशु के साथ घड़ी भर राज्य करने को उन्हें अधिकार दिया जाएगा।
उस चौथे पशु के सिर पर जो दस सींग थे, मैंने उनके बारे में जानना चाहा और मैंने उस सींग के बारे में भी जानना चाहा जो वहाँ उगा था। उस सींग ने उन दस सींगों में से तीन सींग उखाड़ फेंके थे। वह सींग अन्य सींगों से अधिक बड़ा दिखाई देता था। उसकी आँखे थी और वह अपनी डींगे हाँके चला जा रहा था।
वे दस सींग वे दस राजा हैं, जो इस चौथे राज्य में आयेंगे। इन दसों राजाओं के चले जाने के बाद एक और राजा आयेगा। वह राजा अपने से पहले के राजाओं से अलग होगा। वह उनमें से तीन दूसरे राजाओं को पराजित करेगा।
फिर मैंने सागर में से एक पशु को बाहर आते देखा। उसके दस सींग थे और सात सिर थे। तथा अपने सीगों पर उसने दस राजसी मुकुट पहने हुए थे। उसके सिरों पर दुष्ट नाम अंकित थे।
वे दस सींग जिन्हें तुमने देखा, और वह पशु उस वेश्या से घृणा करेंगे तथा उससे सब कुछ छीन कर उसे नंगा छोड़ जायेंगे। वे शरीर को खा जायेंगे और उसे आग में जला डालेंगे।
और बस घड़ी भर में यह सारी सम्पत्ति मिट गयी।’ “फिर जहाज का हर कप्तान, या हर वह व्यक्ति जो जहाज से चाहे कहीं भी जा सकता है तथा सभी मल्लाह और वे सब लोग भी जो सागर से अपनी जीविका चलाते हैं, उस नगरी से दूर ही खड़े रहे
फिर उन्होंने अपने सिर पर धूल डालते हुए रोते-बिलखते कहा, ‘महानगरी! हाय यह कितना भयावह! हाय यह कितना भयानक। जिनके पास जलयान थे, सिंधु जल पर सम्पत्तिशाली बन गए, क्योंकि उसके पास सम्पत्ति थी पर अब बस घड़ी भर में नष्ट हो गयी।