“चोरी का पानी तो, मीठा—मीठा होता है, छिप कर खाया भोजन, बहुत स्वाद देता है।”
स्त्री ने देखा कि पेड़ सुन्दर है। उसने देखा कि फल खाने के लिए अच्छा है और पेड़ उसे बुद्धिमान बनाएगा। तब स्त्री ने पेड़ से फल लिया और उसे खाया। उसका पति भी उसके साथ था इसलिए उसने कुछ फल उसे दिया और उसने उसे खाया।
छल से कमाई रोटी मीठी लगती है पर अंत में उसका मुंह कंकड़ों से भर जाता।
चरित्रहीन स्त्री की ऐसी गति होती है, वह खाती रहती और अपना मुख पोंछ लेती और कहा करती है, मैंने तो कुछ भी बुरा नहीं किया।
तू ही कह, क्या तेरे जलस्रोत राहों में इधर उधर फैल जायें और तेरी जलधारा चौराहों पर फैले
तेरा स्रोत धन्य रहे और अपने जवानी की पत्नी के साथ ही तू आनन्दित रह का रसपान।
किन्तु पाप ने मौका मिलते ही व्यवस्था का लाभ उठाते हुए मुझमें हर तरह की ऐसी इच्छाएँ भर दीं जो अनुचित के लिए थीं। व्यवस्था के अभाव में पाप तो मर गया।
क्योंकि ऐसे काम जिन्हें वे गुपचुप करते हैं, उनके बारे में की गयी चर्चा तक लज्जा की बात है।