वहाँ से जो गुज़रते वह उनसे पुकारकहती, जो सीधे—सीधे अपनी ही राह पर जा रहे;
अपने घर के दरवाजे पर वह बैठी रहती है, नगर के सर्वोच्च बिंदु पर वह आसन जमाती है।
“अरे निर्बुद्धियों! तुम चले आओ भीतर” वह उनसे यह कहती हैजिनके पास भले बुरे का बोध नहीं है,