मैं आलसी के खेत से होते हुए गुजरा जो अंगूर के बाग के निकट था जो किसी ऐसे मनुष्य का था, जिसको उचित—अनुचित का बोध नहीं था।
“अय्यूब, मेरी बात तू सुन और मैं उसकी व्याख्या तुझसे करूँगा। मैं तुझे बताऊँगा, जो मैं जानता हूँ।
मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो कष्टों को बढ़ाते हैं और जो जीवन को कठिन करते हैं। किन्तु वे सदा ही दण्ड भोगते हैं।
“अय्यूब, हमने ये बातें पढ़ी हैं और हम जानते हैं कि ये सच्ची है। अत: अय्यूब सुन और तू इन्हें स्वयं अपने आप जान।”
भले लोग इसको देखते हैं और आनन्दित होते हैं, किन्तु कुटिल इसको देखते हैं और नहीं जानते कि वे क्या कहें।
मैं युवक हुआ करता था पर अब मैं बूढा हूँ। मैंने कभी यहोवा को सज्जनों को असहाय छोड़ते नहीं देखा। मैंने कभी सज्जनों की संतानों को भीख माँगते नहीं देखा।
बुद्धि का निवास सदा समझदार होठों पर होता है, किन्तु जिसमें भले बुरे का बोध नहीं होता, उसके पीठ पर डंडा होता है।
जो अपने खेत में काम करता है उसके पास खाने की बहुतायत होंगी; किन्तु पीछे भागता रहता जो ना समझ के उसके पास विवेक का अभाव रहता है।
आलसी मनोरथ पालता है पर कुछ नहीं पाता, किन्तु परिश्रमी की जितनी भी इच्छा है, पूर्ण हो जाती है।
किन्तु जो पर स्त्री से समागम करता है उसके पास तो विवेक का आभाव है। ऐसा जो करता है वह स्वयं को मिटाता है।
यदि कोई व्यक्ति काम करने में बहुत सुस्त है, तो उसका घर टपकना शुरू कर देगा और उसके घर की छत गिरने लगेगी।
अपने छोटे से जीवन में मैंने सब कुछ देखा है। मैंने देखा है अच्छे लोग जवानी में ही मर जाते हैं। मैंने देखा है कि बुरे लोग लम्बी आयु तक जीते रहते हैं।