जो अनजाने का जामिन बनता है, वह निश्चय ही पीड़ा उठायेगा, किन्तु अपने हाथों को बंधक बनाने से जो मना कर देता है, वह सुरक्षित रहता है।
विवेक हीन जन ही शपथ से हाथ बंधा लेता और अपने पड़ोसी का ऋण ओढ़ लेता है।
जो किसी अजनबी के ऋण की जमानत देता है वह अपने वस्त्र तक गंवा बैठता है।
जो किसी पराये पुरूष का जमानत भरता है उसे अपने वस्त्र भी खोना पड़ेगा।