यहोवा मेरी चट्टान, मेरा गढ़, मेरा शरणस्थल है।” मेरा परमेश्वर मेरी चट्टान है। मैं तेरी शरण मे आया हूँ। उसकी शक्ति मुझको बचाती है। यहोवा ऊँचे पहाड़ों पर मेरा शरणस्थल है।
जहाँ भी मैं कितनी ही निर्बलता में होऊँ, मैं सहायता पाने को तुझको पुकारूँगा! जब मेरा मन भारी हो और बहुत दु:खी हो, तू मुझको बहुत ऊँचे सुरक्षित स्थान पर ले चल।
इसलिये मैं अपने मन्दिर में उनके लिए यादगार का एक पत्थर लगाऊँगा। मेरे नगर में उनका नाम याद किया जायेगा। हाँ! मैं उन्हें पुत्र—पुत्रियों से भी कुछ अच्छा दूँगा। उन हिजड़ों को मैं एक नाम दूँगा जो सदा—सदा बना रहेगा। मेरे लोगों से वे काट कर अलग नहीं किये जायेंगे।”
सर्वशक्तिमान यहोवा ने यह सब कहा, “वैसे ही रहो जैसा मैं कहूँ, और मैं जो कहूँ वह सब करो और तुम मेरे मंदिर के उच्चाधिकारी होगे। तुम इसके आँगन की देखभाल करोगे और मैं अनुमति दूँगा कि तुम यहाँ खड़े स्वर्गदूतों के बीच स्वतन्त्रता से घूमो।
किन्तु मूसा, तुम मेरे निकट खड़े रहो। मैं तुम्हें सारे आदेश, विधि और नियम दूँगा जिसकी शिक्षा तुम उन्हें दोगे। उन्हें ये सभी बातें उस देश में करनी चाहिए जिसे मैं उन्हें रहने के लिए दे रहा हूँ।’
“उस व्यक्ति को यह करना चाहिये। जब वह भागे और उन नगरों में से किसी एक में पहुँचे तो उसे नगर द्वार पर रूकना चाहिये। उसे नगर द्वार पर खड़ा रहना चाहिए और नगर प्रमुखों को बताना चाहिए कि क्या घटा है। तब नगर प्रमुख उसे नगर में प्रवेश करने दे सकते हैं। वे उसे अपने बीच रहने का स्थान देंगे।