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क्रॉस रेफरेंस
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तीतुस 3:2

पवित्र बाइबल

किसी की निन्दा न करें। शांति-प्रिय और सज्जन बनें। सब लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करें।

अध्याय देखें प्रतिलिपि

35 क्रॉस रेफरेंस  

तू ढाल की तरह, मेरी रक्षा करता है। तेरी सहायता ने मुझे विजेता बनाया है।

हे यहोवा, उन मिथ्यावादियों को तू जीने मत दे। बुरे लोगों के साथ बुरी बातें घटा दे।

यदि किसी मनुष्य को तुरंत क्रोध आयेगा, उसको इसका मूल्य चुकाना होगा। यदि तू उसकी रक्षा करता है, तो कितना ही बार तुझे उसको बचाना होगा।

झगड़ालू पत्नी के साथ घर में रहने से छत के किसी कोने पर रहना उत्तम है।

वह झूठा गवाह, जो निरन्तर झूठ उगलता है और ऐसा व्यक्ति जो भाईयों के बीच फूट डाले।

यहोवा अपने लोगों की वैसे ही अगुवाई करेगा जैसे कोई गड़ेरिया अपने भेड़ों की अगुवाई करता है। यहोवा अपने बाहु को काम में लायेगा और अपनी भेड़ों को इकट्ठा करेगा। यहोवा छोटी भेड़ों को उठाकर गोद में थामेगा, और उनकी माताऐं उसके साथ—साथ चलेंगी। संसार परमेश्वर ने रचा: वह इसका शासक है।

मेरा जुआ लो और उसे अपने ऊपर सँभालो। फिर मुझसे सीखो क्योंकि मैं सरल हूँ और मेरा मन कोमल है। तुम्हें भी अपने लिये सुख-चैन मिलेगा।

पौलुस ने उत्तर दिया, “मुझे तो पता ही नहीं कि यह महायाजक है। क्योंकि शासन में लिखा है, ‘तुझे अपनी प्रजा के शासक के लिये बुरा बोल नहीं बोलना चाहिये।’”

लुटेरे, लालची, पियक्कड़, चुगलखोर और ठग परमेश्वर के राज्य के उत्तराधिकारी नहीं होंगे।

यद्यपि मैं किसी भी व्यक्ति के बन्धन में नहीं हूँ, फिर भी मैंने स्वयं को आप सब का सेवक बना लिया है। ताकि मैं अधिकतर लोगों को जीत सकूँ।

मैं, पौलुस, निजी तौर पर मसीह की कोमलता और सहनशीलता को साक्षी करके तुमसे निवेदन करता हूँ। लोगों का कहना है कि मैं जो तुम्हारे बीच रहते हुए विनम्र हूँ किन्तु वही मैं जब तुम्हारे बीच नहीं हूँ, तो तुम्हारे लिये निर्भय हूँ।

क्योंकि मुझे भय है कि कहीं जब मैं तुम्हारे पास आऊँ तो तुम्हें वैसा न पाऊँ, जैसा पाना चाहता हूँ और तुम भी मुझे वैसा न पाओ जैसा मुझे पाना चाहते हो। मुझे भय है कि तुम्हारे बीच मुझे कहीं आपसी झगड़े, ईर्ष्या, क्रोधपूर्ण कहा-सुनी, व्यक्तिगत षड्यन्त्र, अपमान, काना-फूसी, हेकड़पन और अव्यवस्था न मिले।

जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास,

हे भाईयों, तुममें से यदि कोई व्यक्ति कोई पाप करते पकड़ा जाए तो तुम आध्यात्मिक जनों को चाहिये कि नम्रता के साथ उसे धर्म के मार्ग पर वापस लाने में सहायता करो। और स्वयं अपने लिये भी सावधानी बरतो कि कहीं तुम स्वयं भी किसी परीक्षा में न पड़ जाओ।

सो जैसे ही कोई अवसर मिले, हमें सभी के साथ भलाई करनी चाहिये, विशेषकर अपने धर्म-भाइयों के साथ।

सदा नम्रता और कोमलता के साथ, धैर्यपूर्वक आचरण करो। एक दूसरे की प्रेम से सहते रहो।

समूची कड़वाहट, झुँझलाहट, क्रोध, चीख-चिल्लाहट और निन्दा को तुम अपने भीतर से हर तरह की बुराई के साथ निकाल बाहर फेंको।

तुम्हारी सहनशील आत्मा का ज्ञान सब लोगों को हो। प्रभु पास ही है।

यद्यपि हम मसीह के प्रेरितों के रूप में अपना अधिकार जता सकते थे किन्तु हम तुम्हारे बीच वैसे ही नम्रता के साथ रहे जैसे एक माँ अपने बच्चे को दूध पिला कर उसका पालन-पोषण करती है।

इसी प्रकार स्त्रियों को भी सम्मान के योग्य होना चाहिए। वे निंदक नहीं होनी चाहिए बल्कि शालीन और हर बात में विश्वसनीय होनी चाहिए।

वह पियक्कड़ नहीं होना चाहिए, न ही उसे झगड़ालू होना चाहिए। उसे तो सज्जन तथा शांतिप्रिय होना चाहिए। उसे पैसे का प्रेमी नहीं होना चाहिए।

किन्तु स्वर्ग से आने वाला ज्ञान सबसे पहले तो पवित्र होता है, फिर शांतिपूर्ण, सहनशील, सहज-प्रसन्न, करुणापूर्ण होता है। और उससे उत्तम कर्मों की फ़सल उपजती है। वह पक्षपात-रहित और सच्चा भी होता है।

हे भाईयों, एक दूसरे के विरोध में बोलना बंद करो। जो अपने ही भाई के विरोध में बोलता है, अथवा उसे दोषी ठहराता है, वह व्यवस्था के ही विरोध में बोलता है और व्यवस्था को दोषी ठहराता है। और यदि तुम व्यवस्था पर दोष लगाते हो तो व्यवस्था के विधान का पालन करने वाले नहीं रहते वरन् उसके न्यायकर्त्ता बन जाते हो।

इसलिए सभी बुराइयों, छल-छद्मों, पाखण्ड तथा वैर-विरोधों और परस्पर दोष लगाने से बचे रहो।

शास्त्र कहता है: “जो जीवन का आनन्द उठाना चाहे जो समय की सद्गति को देखना चाहे उसे चाहिए वह कभी कहीं बुरे बोल न बोले। वह अपने होठों को छल वाणी से रोके

अन्त में तुम सब को समानविचार, सहानुभूतिशील, अपने बन्धुओं से प्रेम करने वाला, दयालु और नम्र बनना चाहिए।

अब जब तुम इस घृणित रहन सहन में उनका साथ नहीं देते हो तो उन्हें आश्चर्य होता है। वे तुम्हारी निन्दा करते हैं।

विशेष कर उनको जो अपनी पापपूर्ण प्रकृति की बुरी वासनाओं के पीछे चलते हैं और प्रभु की प्रभुता से घृणा रखते हैं। ये अपने आप पर घमण्ड करते हैं। ये महिमावान का अपमान करने से भी नहीं डरते।

किन्तु ये लोग तो उन बातों की आलोचना करते हैं, जिन्हें ये समझते ही नहीं और ये लोग बुद्धिहीन पशुओं के समान जिन बातों से सहज रूप से परिचित हैं, वे बातें वे ही हैं जिनसे उनका नाश होने को है।

ठीक इसी प्रकार हमारे समूह में घुस आने वाले ये लोग अपने स्वप्नों के पीछे दौड़ते हुए अपने शरीरों को विकृत कर रहे हैं। ये प्रभु के सामर्थ्य को उठाकर ताक पर रख छोड़ते है तथा महिमावान स्वर्गदूतों के विरोध में बोलते हैं।




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