तब मैंने बातें करने वाले उस दूत से पूछा, “वे टोकरी को कहाँ ले जा रही हैं?”
मैंने उससे पूछा, “तुम कहाँ जा रहे हो” उसन मुझे उत्तर दिया, “यरूशलेम को नापने जा रहा हूँ, कि वह कितना लम्बा तथा कितना चौङा है।”
दुत ने मुझ से कहा, “वे शिनार में इसके लिये एक मंदिर बनाने जा रही हैं जब वे मंदिर बना लेंगी तो वे उस टोकरी को वहाँ रखेंगी।”
तब मैंने नजर उठाई और दो स्त्रियों को सारस के समान पंख सहित देखा। वे उङी और अपने पंखों में हवा के साथ उन्होंने टोकरी को उठा लि या। वे टोकरी लिये हवा में उङती रहीं।
तब मैंने बात करने वाले उस दुत से पुछा, “महोदय, इन चीजों का तात्पर्य क्या है?”