जल पहाड़ों के ऊपर बढ़ता रहा। सबसे ऊँचे पहाड़ से तेरह हाथ ऊँचा था।
“जो जहाज मैं बनवाना चाहता हूँ उसका नाप तीन सौ हाथ लम्बाई, पचास हाथ चौड़ाई, तीस हाथ ऊँचाई है।
जल इतना ऊँचा उठा कि ऊँचे—से—ऊँचे पहाड़ भी पानी में डूब गए।
जहाज अरारात के पहाड़ों में से एक पर आ टिका। यह सातवें महीने का सत्तरहवाँ दिन था।
तूने जल की चादर से धरती को ढका। जल ने पहाड़ों को ढक लिया।
पहाड़ियों पर देवमूर्तियों की पूजा मूर्खता थी। पर्वतों के सभी गरजने वाले दल केवल थोथे निकले। निश्चय ही इस्राएल की मुक्ति, यहोवा अपने परमेश्वर से है।