इसलिए परमेश्वर ने नूह से कहा, “सारे लोगों ने पृथ्वी को क्रोध और हिंसा से भर दिया है। इसलिए मैं सभी जीवित प्राणियों को नष्ट करूँगा। मैं उनको पृथ्वी से हटाऊँगा।
इस तरह परमेश्वर ने पृथ्वी के सभी जीवित हर एक मनुष्य, हर एक जानवर, हर एक रेंगने वाले जीव और हर एक पक्षी को नष्ट कर दिया। वे सभी पृथ्वी से खत्म हो गए। केवल नूह, उसके साथ जहाज में चढ़े लोगों और जानवरों का जीवन बचा रहा।
अब से सातवें दिन मैं पृथ्वी पर बहुत भारी वर्षा भेजूँगा। यह वर्षा चालीस दिन और चालीस रात होती रहेगी। पृथ्वी के सभी जीवित प्राणी नष्ट हो जायेंगे। मेरी बनाई सभी चीज़े खत्म हो जायेंगें।”
यहोवा इन बलियों की सुगन्ध पाकर खुश हुआ। यहोवा ने मन—ही—मन कहा, “मैं फिर कभी मनुष्य के कारण पृथ्वी को शाप नहीं दूँगा। मानव छोटी आयु से ही बुरी बातें सोचने लगता है। इसलिए जैसा मैंने अभी किया है इस तरह मैं अब कभी भी सारे प्राणियों को सजा नहीं दूँगा।
हे सभी देशों के लोगों, पास आओ और सुनो! तुम सब लोगों को ध्यान से सुनना चाहिये। हे धरती और धरती पर के सभी लोगों, हे जगत और जगत की सभी वस्तुओं, तुम्हें इन बातों पर कान देना चाहिये।
यहोवा ने पूछा, “आमोस, तुम क्या देखते हो” मैंने कहा, “ग्रीष्म के फलों की एक टोकरी।” तब यहोवा ने मुझसे कहा, “मेरे लोग इस्राएलियों का अन्त आ गया है। मैं उनके पापों को और अनदेखा नहीं कर सकता।
विश्वास के कारण ही नूह को जब उन बातों की चेतावनी दी गयी जो उसने देखी तक नहीं थी तो उसने पवित्र भयपूर्वक अपने परिवार को बचाने के लिए एक नाव का निर्माण किया था। अपने विश्वास से ही उसने इस संसार को दोषपूर्ण माना और उस धार्मिकता का उत्तराधिकारी बना जो विश्वास से आती है।