क्योंकि हमें भी उन्हीं के समान सुसमाचार का उपदेश दिया गया है। किन्तु जो सुसंदेश उन्होंने सुना, वह उनके लिए व्यर्थ था। क्योंकि उन्होंने जब उसे सुना तो इसे विश्वास के साथ धारण नहीं किया।
किन्तु पौलुस और बरनाबास ने निडर होकर कहा, “यह आवश्यक था कि परमेश्वर का वचन पहले तुम्हें सुनाया जाता किन्तु क्योंकि तुम उसे नकारते हो तथा तुम अपने आपको अनन्त जीवन के योग्य नहीं समझते, सो हम अब गैर यहूदियों की ओर मुड़ते हैं।
तो मैं कुछ नहीं हूँ। यदि मैं अपनी सारी सम्पत्ति थोड़ी-थोड़ी कर के ज़रूरत मन्दों के लिए दान कर दूँ और अब चाहे अपने शरीर तक को जला डालने के लिए सौंप दूँ किन्तु यदि मैं प्रेम नहीं करता तो। इससे मेरा भला होने वाला नहीं है।
शास्त्र ने पहले ही बता दिया था, “परमेश्वर ग़ैर यहूदियों को भी उनके विश्वास के कारण धर्मी ठहरायेगा। और इन शब्दों के साथ पहले से ही इब्राहीम को परमेश्वर द्वारा सुसमाचार से अवगत करा दिया गया था।”
क्योंकि हमारे सुसमाचार का विवरण तुम्हारे पास मात्र शब्दों में ही नहीं पहुँचा है बल्कि पवित्र आत्मा सामर्थ्य और गहन श्रद्धा के साथ पहुँचा है। तुम जानते हो कि हम जब तुम्हारे साथ थे, तुम्हारे लाभ के लिए कैसा जीवन जीते थे।
और इसलिए हम परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर करते रहते हैं क्योंकि हमसे तुमने जब परमेश्वर का वचन ग्रहण किया तो उसे मानवीय सन्देश के रूप में नहीं बल्कि परमेश्वर के सन्देश के रूप में ग्रहण किया, जैसा कि वह वास्तव में है। और तुम विश्वासियों पर जिसका प्रभाव भी है।
क्योंकि शारीरिक साधना से तो थोड़ा सा ही लाभ होता है जबकि परमेश्वर की सेवा हर प्रकार से मूल्यवान है क्योंकि इसमें आज के समय और आने वाले जीवन के लिए दिया गया आशीर्वाद समाया हुआ है।
और विश्वास के बिना तो परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है। क्योंकि हर एक वह जो उसके पास आता है, उसके लिए यह आवश्यक है कि वह इस बात का विश्वास करे कि परमेश्वर का अस्तित्व है और वे जो उसे सच्चाई के साथ खोजते हैं, वह उन्हें उसका प्रतिफल देता है।
जिन्हें पहले सुसन्देश सुनाया गया था अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण वे तो विश्राम में प्रवेश नहीं पा सके किन्तु औरों के लिए विश्राम का द्वार अभी भी खुला है।
हर घिनौने आचरण और चारो ओर फैली दुष्टता से दूर रहो। तथा नम्रता के साथ तुम्हारे हृदयों में रोपे गए परमेश्वर के वचन को ग्रहण करो जो तुम्हारी आत्माओं को उद्धार दिला सकता है।
उन्हें यह दर्शा दिया गया था कि उन बातों का प्रवचन करते हुए वे स्वयं अपनी सेवा नहीं कर रहे थे बल्कि तुम्हारी कर रहे थे। वे बातें स्वर्ग से भेजे गए पवित्र आत्मा के द्वारा तुम्हें सुसमाचार का उपदेश देने वालों के माध्यम से बता दी गई थीं। और उन बातों को जानने के लिए तो स्वर्गदूत तक तरसते हैं।