“अत: अब मुझे शिक्षा दो और मैं शान्त हो जाऊँगा। मुझे दिखा दो कि मैंने क्या बुरा किया है।
मैं परमेश्वर से कहूँगा ‘मुझ पर दोष मत लगा। मुझे बता दै, मैंने तेरा क्या बुरा किया मेरे विरुद्ध तेरे पास क्या है?
कितने पाप मैंने किये हैं? कौन सा अपराध मुझसे बन पड़ा? मुझे मेरे पाप और अपराध दिखा।
जब तक तुम लोग बोलते रहे, मैंने धैर्य से प्रतिक्षा की, मैंने तुम्हारे तर्क सुने जिनको तुमने व्यक्त किया था, जो तुमने चुन चुन कर अय्यूब से कहे।
“किन्तु अय्यूब अब, मेरा सन्देश सुन। उन बातों पर ध्यान दे जिनको मैं कहता हूँ।
हे परमेश्वर, तू मुझे वे बातें सिखा जो मैं नहीं जानता हूँ। यदि मैंने कुछ बुरा किया तो फिर, मैं उसको नहीं करूँगा।
“अय्यूब, हमने ये बातें पढ़ी हैं और हम जानते हैं कि ये सच्ची है। अत: अय्यूब सुन और तू इन्हें स्वयं अपने आप जान।”
क्या मैंने तुमसे कहा कि शत्रुओं से मुझे बचा लो और क्रूर व्यक्तियों से मेरी रक्षा करो।
सच्चे शब्द सशक्त होते हैं किन्तु तुम्हारे तर्क कुछ भी नहीं सिद्ध करते।
हे यहोवा, अपने सभी दोषों को कोई नहीं देख पाता है। इसलिए तू मुझे उन पापों से बचा जो एकांत में छुप कर किये जाते हैं।
यहोवा कहता है, “मैं तुझे जैसे चलना चाहिए सिखाऊँगा और तुझे वह राह दिखाऊँगा। मैं तेरी रक्षा करुँगा और मैं तेरा अगुवा बनूँगा।
जो कान बुद्धिमान की झिड़की सुनता है, वह उसके कान के लिये सोने की बाली या कुन्दन की आभूषण बन जाता है।
बुद्धिमान को प्रबोधो, वह अधिक बुद्धिमान होगा, किसी धर्मी को सिखाओ, वह अपनी ज्ञान वृद्धि करेगा।
हे मेरे प्रिय भाईयों, याद रखो, हर किसी को तत्परता के साथ सुनना चाहिए, बोलने में शीघ्रता मत करो, क्रोध करने में उतावली मत बरतो।
मैं तुम्हें ऐसे इसलिए चेता रहा हूँ कि हम सबसे बहुत सी भूल होती ही रहती हैं। यदि कोई बोलने में कोई भी चूक न करे तो वह एक सिद्ध व्यक्ति है तो फिर ऐसा कौन है जो उस पर पूरी तरह काबू पा सकता है?