मैं अपने दास को बुलाता हूँ पर वह मेरी नहीं सुनता है। यहाँ तक कि यदि मैं सहायता माँगू तो मेरा दास मुझको उत्तर नहीं देता।
तभी रेगिस्तान से अचानक एक तेज आँधी उठी और उसने मकान को उड़ा कर ढहा दिया। मकान आपके पुत्र और पुत्रियों के ऊपर आ पड़ा और वे मर गये। आपको समाचार देने के लिये केवल मैं ही बच निकल पाया हूँ।”
मेरे घर के अतिथि और मेरी दासियाँ मुझे ऐसे दिखते हैं मानों अन्जाना या परदेशी हूँ।
मेरी ही पत्नी मेरे श्वास की गंध से घृणा करती है। मेरे अपनी ही भाई मुझ से घृणा करते हैं।