मेरी आँख लगभग अन्धी हो चुकी है क्योंकि मैं बहुत दु:खी और बहुत पीड़ा में हूँ। मेरी देह एक छाया की भाँति दुर्बल हो चुकी है।
मेरा मुख रोते—बिलखते लाल हुआ। मेरी आँखों के नीचे काले घेरे हैं।
मेरे मित्र मेरे विरोधी हो गये हैं किन्तु परमेश्वर के लिये मेरी आँखें आँसू बहाती हैं।
तूने मुझे बांध दिया और हर कोई मुझे देख सकता है। मेरी देह दुर्बल है, मैं भयानक दिखता हूँ और लोग ऐसा सोचते हैं जिस का तात्पर्य है कि मैं अपराधी हूँ।
मेरा शरीर कीड़ों और धूल से ढका हुआ है। मेरी त्वचा चिटक गई है और इसमें रिसते हुए फोड़े भर गये हैं।
मुझे ऐसा लग रहा जैसे मेरा जीवन साँझ के समय की लम्बी छाया की भाँति बीत चुका है। मुझे ऐसा लग रहा जैसे किसी खटमल को किसी ने बाहर किया।
मेरे शत्रुओं ने मुझे बहुतेरे दु:ख दिये। इसने मुझे शोकाकुल और बहुत दु:खी कर डाला और अब मेरी आँखें रोने बिलखने से थकी हारी, दुर्बल हैं।
अरे ओ दुर्जनों, तुम मुझ से दूर हटो। क्योंकि यहोवा ने मुझे रोते हुए सुन लिया है।
कौन जानता है कि इस धरती पर मनुष्य के छोटे से जीवन में उसके लिये सबसे अच्छा क्या है? उसका जीवन तो छाया के समान ढल जाता है। बाद में क्या होगा कोई नहीं बता सकता।
इसलिये हमारे मन रोगी हुए है; इन ही बातों से हमारी आँखें मद्धिम हुई है।