“किन्तु जो कुछ मैं कहता हूँ उससे मेरा दु:ख दूर नहीं हो सकता। किन्तु यदि मैं कुछ भी न कहूँ तो भी मुझे चैन नहीं पड़ता।
“किन्तु हाय, अब मैं वैसा नहीं कर सकता। मुझ को स्वयं अपने जीवन से घृणा हैं अत: मैं मुक्त भाव से अपना दुखड़ा रोऊँगा। मेरे मन में कड़वाहट भरी है अत: मैं अबबोलूँगा।
किन्तु मैं अपने वचनों से तुम्हारा साहस बढ़ा सकता हूँ और तुम्हारे लिये आशा बन्धा सकता हूँ?
“यदि मैं कहूँ कि मैं अपना दुखड़ा रोऊँगा, अपना दु:ख भूल जाऊँगा और उदासी छोड़कर हँसने लगूँगा।
इससे वास्तव में कोई भी परिवर्तन नहीं होता है। पीड़ा मुझे अभी भी भयभीत करती है।